Sunday, April 27, 2014

अविराम चलता यह जीवन

अविराम चलता यह जीवन
इक नए मोड़ पर खड़ा है।

पूछता है क्या किया जो
मुझे कोसते हो

कब मैंने तुम्हें हराया;
कब तुम्हारा दिल दुखाया

कब किस्मत के लेखे को;
मैं बदल पाया!

मैंने कहा ऐ जीवन;
कोसता यूं नहीं मैं के मैंने ठोकर खाई है;
कोसता यूं नहीं के मैं आज हारा हुआ हूँ;

कोसता यूं हूँ के भाग्य के लेखे को तूं बदल न पाया;
कोसता यूं हूँ के जब जीवन मेरा है; 
यह भाग्य मेरा है तो फिर किसी का जीवन इसे प्रभावित क्यों करता है;
क्यों इन श्वासों के साथ दूसरे श्वासों का जुड़ाव हो जाता है;
क्यों तेरी तकदीर किसी और की तकदीर के साथ जुड़ जाती है;
क्यों तूँ निराश होता है;

जीवन ने कहा:

मैं तो तेरा ही भाग हूँ;
कोस मत बदल दे;
भाग्यरेखा क्या रोकेगी तुझे;
उठ खड़ा हो और चल;
इसे महान तूँ बनाएगा; इस व्याकुलता को तूँ मिटाएगा।

तब आया समझ ये जीवन तो आईना ही है मेरा;
इसमें केवल मैं ही तो हूँ; साथ ही हैं वे सब जिन्हें मैं चाहता हूँ।

रविन्द्र सिंह ढुल/22.06.2014



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