Monday, June 24, 2013

विचार

कोई भी धर्म हिंसा, घृणा, वैर नहीं फैला सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उस धर्म का प्रचारक पाखंडी एवं झूठा है। अब यह सोचने वाली बात है कि मैंने धर्म प्रचारकों को पाखंडी कहा; धर्म को नहीं।
धर्म मेरे किसी विचार से एवं किसी एक मनुष्य से कहीं महान हैं। धर्म चाहे कोई भी हो, पृथ्वी के किसी भी कोने में क्यों न हो, सच्चा होगा, धर्म को झूठा बताने वाला गलत हो सकता है पर धर्म नहीं। धर्म किसी भी व्यक्ति की आस्था का केंद्र है; उसका विशवास है; उसका चरित्र है; उसकी नैतिकता है। नैतिक जीवन जीने वाला किसी एक पाखंडी साधू से अधिक धार्मिक है जो जाप तो हर रोज करता है पर हृदय में श्रद्धा नहीं रखता।
संस्कृत में एक श्लोक है"यतो धर्मस्ततो जयः" अर्थात जहाँ धर्म है; वहीँ विजय है। मैं अपने आपको एक हिन्दू धर्म के साथ जुडा मानकर उस ईश का अपमान क्यों करून जिसने हमें उत्पन्न किया है; यदि मुझे मुस्लिम धर्म समर्पण करना सिखाता है; इसाई धर्म सामान्य नैतिकता सिखाता है; सिख धर्म सेवा सिखाता है तो केवल हिन्दू धर्म से शिक्षा ग्रहण करके मैं उन धर्मात्माओं का अपमान नहीं कर सकता जिन्होंने इन महान विचारधाराओं को प्रतिपादित किया है। हालांकि यह भी उतना ही सच है की वे लोग किसी भी मान या अपमान से परे हैं और  महान हैं कि मेरी प्रशंसा या मेरी आलोचना उन्हें छू भी न पाएगी।
कल कुछ और लिखूंगा; तब तक के लिए शुभ रात्रि-रविन्द्र