Friday, May 17, 2013

वो जिसके हाथ में छाले हैं

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बँगले में आई है

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्‍नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्‍क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है/अदम गोंडवी

मेरा एक जीवन है

 मेरा एक जीवन है
उसमें मेरे प्रिय हैं, मेरे हितैषी हैं, मेरे गुरुजन हैं
उसमें कोई मेरा अनन्यतम भी है

पर मेरा एक और जीवन है
जिसमें मैं अकेला हूँ
जिस नगर के गलियारों, फुटपाथ, मैदानों में घूमा हूँ
हँसा खेला हूँ
उसके अनेक हैं नागर, सेठ, म्युनिस्पलम कमिश्नर, नेता
और सैलानी, शतरंजबाज और आवारे
पर मैं इस हाहाहूती नगरी में अकेला हूँ

देह पर जो लता-सी लिपटी
आँखों में जिसने कामना से निहारा
दुख में जो साथ आए
अपने वक्त पर जिन्होंने पुकारा
जिनके विश्वास पर वचन दिए, पालन किया
जिनका अंतरंग हो कर उनके किसी भी क्षण में मैं जिया

वे सब सुहृद हैं, सर्वत्र हैं, सर्वदा हैं
पर मैं अकेला हूँ

सारे संसार में फैल जाएगा एक दिन मेरा संसार
सभी मुझे करेंगे - दो चार को छोड़ - कभी न कभी प्यार
मेरे सृजन, कर्म-कर्तव्य, मेरे आश्वासन, मेरी स्थापनाएँ
और मेरे उपार्जन, दान-व्यय, मेरे उधार
एक दिन मेरे जीवन को छा लेंगे - ये मेरे महत्व
डूब जाएगा तंत्रीनाद कवित्त रस में, राग में रंग में
मेरा यह ममत्व
जिससे मैं जीवित हूँ
मुझ परितप्त को तब आ कर वरेगी मृत्यु - मैं प्रतिकृत हूँ

पर मैं फिर भी जियुँगा
इसी नगरी में रहूँगा
रूखी रोटी खाउँगा और ठंड़ा पानी पियूँगा
क्योंकि मेरा एक और जीवन है और उसमें मैं अकेला हूँ/रघुवीर सहाय