Monday, September 8, 2014

अकेला चलना क्यों इतना महत्त्वपूर्ण

अकेला चलना क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है यह इस बात से साबित होता है कि न केवल आप इस जीवन में अकेले आते हैं ; अपितु आपकी अंतिम यात्रा भी अकेली ही रहती है। श्री कृष्ण गीता के सन्देश में केवल इतना ही कहते हैं कि हे पार्थ तूँ मुझमें है और मैं तुझमें। अन्य किसी और के बारे में मत सोच। मैं ही तेरा एक मात्र सच्चा साथी हूँ। ये युद्ध के मैदान में जो तेरे संगी साथी खड़े हैं ये कभी तेरे थे ही नहीं जो तूँ इनके लिए इतना शोकग्रस्त है। ऐसा कोई समय नहीं था जब तुम नहीं थे अथवा मैं नहीं था अथवा ये तुम्हारे संगी साथी नहीं थे। ऐसा कोई समय नहीं होगा जब ये नहीं होंगे। तो इनके लिए शौक ग्रस्त मत हो एवं स्वयं का कर्म कर। कर्म करते वक्त फल की इच्छा भी मत कर। केवल मात्र कर्म कर एवं उसे मुझे अर्पित कर। ऐसे भक्त जो कर्म कर उसे मुझे समर्पित कर देते हैं मैं उनके योगक्षेम का वहन करता हूँ। यह संदेश कृष्ण ने केवल अर्जुन को अपना शिष्य एवं सखा मान दिया। यदि कृष्ण चाहते तो वह देववाणी समस्त युद्ध मैदान में सुनाई देती। पर श्री कृष्ण ने अकेले अर्जुन को यह सन्देश दे स्पष्ट कर दिया कि अर्जुन का युद्ध केवल मात्र अर्जुन लड़ रहा था तथा कृष्ण उसके सारथी थे। भीम स्वयं का युद्ध लड़ रहा था इस ही प्रकार सभी पात्र स्वयं के लिए लड़ रहे थे।

हम आराम से समझ सकते हैं कि अकेला रहना एवं चलना बेहद महत्त्वपूर्ण है।