मैनें कई बार
कोशिश की है
तुम से दूर जानें की,
लेकिन
मीलों चलनें के बाद
जब मुड़ कर देखता हूँ
तो तुम्हें
उतना ही करीब पाता
हूँ |
तुम्हारे इर्द
गिर्द
वृत्त की
परिधि बन कर रह गया
हूँ मैं ।
कवि अज्ञात
पथ उस राही का जिसे न मंजिल पता है और न ही राह। उसे बस चलना आता है। राही को साथ ले भी और अकेले भी।