Sunday, April 27, 2014

एक प्रयास

एक उपन्यास का लेखन प्रारम्भ कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि अपेक्षा अनुरूप उसे सही रूप दे पाऊंगा।  उस उपन्यास में एक ऐसे रिश्ते का दर्द छिपा है जिसकी न कोई सामाजिक स्वीकार्यता है और न ही उसका कोई मूल्य है। मूल्य उसका केवल मात्र उन इंसानों के लिए है जिनके लिए उस रिश्ते की कीमत है। जबसे जीवन का पदार्पण हुआ है विश्व में तब से न केवल सामाजिक मान्यताएं बदली हैं अपितु हर पल विश्व में नवी ऊर्जा जन्म लेती है एवं प्राचीन तथा मृत ऊर्जा समाप्त हो जाती है। जिन सामाजिक मान्यताओं को आज समाज मानता है वे किसी समय में बिलकुल मायने नहीं रखती थी एवं जिन सामाजिक मान्यताओं को समाज आज के दिन मानता है वे आवश्यक नहीं आने वाले समाज का आधार बनें। यह उपन्यास उन अधूरी मान्यताओं को लेकर है जिसे समाज ने अपने हिसाब से समय समय पर बदला है एवं उन मान्यताओं के कारण जिसने अपने जीवन को समाप्त किया है वह है इंसान। हमें उस प्रकार जीना पड़ता है जिस प्रकार समाज हमें जीने देना चाहता है। कहानी के पात्र दो हैं एक पुरुष एवं एक महिला। इस उपन्यास को एक वार्तालाप का रूप देकर उन मान्यताओं को समझने का एक प्रयास किया गया है जिनके कारण इस उपन्यास के पात्रों को अपने जीवन की दिशा न चाहते हुए भी बदलनी पड़ी थी। मेरा इरादा किसी भी वर्ग या किसी मान्यता को ठेस पंहुचाने का नहीं है अपितु मेरा इरादा केवल कुछ प्रश्नों को छोड़ जाने का है जिनका उत्तर शायद आने वाले समय के पास हो।

मेरा हमेशा से मानना है कि विचारों को गति देने के लिए उन्हें खुले आसमान में छोड़ देना चाहिए। समाज की बेड़ियों से जकड़ी स्वतंत्रता के कोई मायने नहीं हैं।

रविन्द्र

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