Saturday, November 26, 2011

बढे चलो-बढे चलो/"वामिक'जौनपुरी

बढे चलो-बढे चलो
यही निदा-ए-वक्त है 
ये कायनात
ये जमीं
निजामे-शम्स का नगीं
ये कहकशां सा रास्ता
इसी पे गामज़न रहो
ये तीरगी तो आरिजी है, मत डरो
यहाँ से दूर, कुछ परे पे सुब्ह का मुकाम है
स्ला-ए-बज्मे-आम है
कदम कदम पे इस कदर रुकावटें कि अल अमीं
मगर अजीब शान से ये कारवां रवां-दवां
चला ही जाएगा परे
उफक से भी परे नहीं
तुम्हारे नक़्शे-पा में जिंदगी का रंग
हंस रहा है ताकि पीछे
आने वालों को पता ये चल सके
कि इस तरफ से एक कारवां गुजर चुका है कल
और अपने जिस्मों जां को वक्फ कर चुका है कल
बढे चलो बढे चलो- 'वामिक'जौनपुरी 

अर्थ: निदा-ए-वक़्त: वक़्त की पुकार, कायनात: ब्रह्माण्ड, नगीं:नगीना, कहकशा-सां: आकाश-गंगा जैसा, गामजन:चलते, तीरगी:अँधेरा, बज्मे-ए-आम: जन साधारण के लिए आमंत्रण, अल-अमां: त्राहि, उफक: क्षितिज, नक़्शे-पा: पदचिन्ह, वक्फ: अर्पण 

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