Saturday, November 12, 2011

किसान की व्यथा


तन्ने अन्नदाता जीवन दाता कहै, सब क्याहें का पालन हार,
जमींदार सुन कर्मबीर तू, सब तेन बती हीतमदार.

कमा कमा दूज्यान का भरे, तन्ने मिलता न टूकड़ा पेट भराई,
जिन खातिर दिन रात कमावे, के जाने वै पीड पराई.
कुडकी ले कै आन खड़े हों, लेज्याँ सारी करी कराई,
बछिया तक लाने में लग्ज्या, डूबी नैया तरी तराई,
तेरे कर्म व्यर्थ, जा भरी भराई, बन मूल रहा न्युएँ भार..-पंडित लख्मीचंद 

किसान की ये व्यथा हरियाणा की इस पुरानी रागिनी में है, क्या कुछ बदला है? यदि नहीं तो किस तरक्की की बात कर रहे हैं हम?

No comments:

Post a Comment