हमारे जीवन की विशिष्टता इस बात में है कि हम असंभव एवं मुश्किल परिस्थितियां का सामना किस प्रकार करते हैं। लघु बुद्धि वाला मनुष्य स्वयं को इस प्रकार की परिस्थितियों में समाप्त कर लेता है तथा स्थिर बुद्धि वाला मनुष्य इस प्रकार की परिस्थितियों में स्वयं को संयमित रख जीवन यापन करता है। कहते हैं यदि रास्ता मुश्किल हो तो वह हमेशा सुन्दर मंजिलों की तऱफ ले जाता है अतः आवश्यक है कि इस प्रकार के समय को हम संयमित करके निकलें।हर मुश्किल परिस्थिति हमें कुछ सिखाने आती है तथा साथ में लाती है बहुत से नव संघर्ष जो हम उन परिस्थितियों का सामना करने के बाद करते हैं। स्थिर एवं विवेकशील बुद्धि का व्यक्ति सभी प्रकार की परिस्थितियों का समभाव से सामना कर आगे बढ़ता है। न केवल हमें आगे बढ़ने की आवश्यकता है ;अपितु आवश्यकता है कि हम आगे बढ़ते हुए अपनी बुद्धि को स्थिर रखें।
पथ उस राही का जिसे न मंजिल पता है और न ही राह। उसे बस चलना आता है। राही को साथ ले भी और अकेले भी।
Tuesday, November 11, 2014
याद है/ Unknown Author
याद है,
तुम और मैं
पहाड़ी वाले शहर की
लम्बी, घुमावदार,
सड़्क पर
बिना कुछ बोले
हाथ में हाथ डाले
बेमतलब, बेपरवाह
मीलों चला करते थे,
खम्भों को गिना करते थे,
और मैं जब
चलते चलते
थक जाता था
तुम कहती थीं ,
बस
उस अगले खम्भे
तक और ।
आज
मैं अकेला ही
उस सड़्क पर निकल आया हूँ ,
खम्भे मुझे अजीब
निगाह से
देख रहे हैं
मुझ से तुम्हारा पता
पूछ रहे हैं
मैं थक के चूर चूर हो गया हूँ
लेकिन वापस नहीं लौटना है
हिम्मत कर के ,
अगले खम्भे तक पहुँचना है
सोचता हूँ
तुम्हें तेज चलने की आदत थी,
शायद
अगले खम्भे तक पुहुँच कर
तुम मेरा
इन्तजार कर रही हो !
तुम और मैं
पहाड़ी वाले शहर की
लम्बी, घुमावदार,
सड़्क पर
बिना कुछ बोले
हाथ में हाथ डाले
बेमतलब, बेपरवाह
मीलों चला करते थे,
खम्भों को गिना करते थे,
और मैं जब
चलते चलते
थक जाता था
तुम कहती थीं ,
बस
उस अगले खम्भे
तक और ।
आज
मैं अकेला ही
उस सड़्क पर निकल आया हूँ ,
खम्भे मुझे अजीब
निगाह से
देख रहे हैं
मुझ से तुम्हारा पता
पूछ रहे हैं
मैं थक के चूर चूर हो गया हूँ
लेकिन वापस नहीं लौटना है
हिम्मत कर के ,
अगले खम्भे तक पहुँचना है
सोचता हूँ
तुम्हें तेज चलने की आदत थी,
शायद
अगले खम्भे तक पुहुँच कर
तुम मेरा
इन्तजार कर रही हो !
Wednesday, October 22, 2014
ज्ञान असत्य है
समस्त ज्ञान असत्य है एवं समस्त सत्य ज्ञान का स्वरुप है। समस्त सांसारिक ज्ञान केवल मात्र तर्क की शक्ति पर टिका है एवं जब तक वह तर्क की सीमा को पार नहीं कर देता उसे संसार ज्ञान की श्रेणी में नहीं रखता। श्री रामकृष्ण परमहँस कहते हैं कि ज्ञान विश्वास से पैदा होता है न कि तर्क से। प्रथम आपकी बुद्धि स्वीकार करेगी उस उस अनजान को उसके बाद ही ज्ञान पैदा होगा एवं जन्म लेगा। यदि बुद्धि स्वीकार करने की स्थिति में होगी ही नहीं तो ज्ञान आ ही नहीं सकता। साकार ब्रह्म अथवा निराकार ब्रह्म दोनों ही उस ज्ञान के स्वरूप हैं। श्री परमहँस भी उस ज्ञान से जन्म लेते हैं तथा श्री दयानंद भी। जहाँ एक ओर हजरत मोहम्मद उस ही ज्ञान से जन्म लेते हैं तो दूसरी ओर ओशो भी उस ज्ञान का स्वरुप मात्र है। यदि हम इन परस्पर विरोधाभासी महापुरुषों को एक तर्क की श्रेणी में रखेंगे तो हम समझ पाएंगे कि सभी का ज्ञान अधूरा है। वहीँ दूसरी ओर यदि किसी एक के ऊपर दृढ विश्वास किया जाए तो सभी पूर्ण हैं। अतः स्पष्ट है कि विश्वास कीजिये कि तर्क के परे झाँका जा सकता है। माँ भारती आप सबका मार्ग प्रशस्त करे।
रविन्द्र सिंह ढुल
रविन्द्र सिंह ढुल
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Monday, September 8, 2014
अकेला चलना क्यों इतना महत्त्वपूर्ण
अकेला चलना क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है यह इस बात से साबित होता है कि न केवल आप इस जीवन में अकेले आते हैं ; अपितु आपकी अंतिम यात्रा भी अकेली ही रहती है। श्री कृष्ण गीता के सन्देश में केवल इतना ही कहते हैं कि हे पार्थ तूँ मुझमें है और मैं तुझमें। अन्य किसी और के बारे में मत सोच। मैं ही तेरा एक मात्र सच्चा साथी हूँ। ये युद्ध के मैदान में जो तेरे संगी साथी खड़े हैं ये कभी तेरे थे ही नहीं जो तूँ इनके लिए इतना शोकग्रस्त है। ऐसा कोई समय नहीं था जब तुम नहीं थे अथवा मैं नहीं था अथवा ये तुम्हारे संगी साथी नहीं थे। ऐसा कोई समय नहीं होगा जब ये नहीं होंगे। तो इनके लिए शौक ग्रस्त मत हो एवं स्वयं का कर्म कर। कर्म करते वक्त फल की इच्छा भी मत कर। केवल मात्र कर्म कर एवं उसे मुझे अर्पित कर। ऐसे भक्त जो कर्म कर उसे मुझे समर्पित कर देते हैं मैं उनके योगक्षेम का वहन करता हूँ। यह संदेश कृष्ण ने केवल अर्जुन को अपना शिष्य एवं सखा मान दिया। यदि कृष्ण चाहते तो वह देववाणी समस्त युद्ध मैदान में सुनाई देती। पर श्री कृष्ण ने अकेले अर्जुन को यह सन्देश दे स्पष्ट कर दिया कि अर्जुन का युद्ध केवल मात्र अर्जुन लड़ रहा था तथा कृष्ण उसके सारथी थे। भीम स्वयं का युद्ध लड़ रहा था इस ही प्रकार सभी पात्र स्वयं के लिए लड़ रहे थे।
हम आराम से समझ सकते हैं कि अकेला रहना एवं चलना बेहद महत्त्वपूर्ण है।
हम आराम से समझ सकते हैं कि अकेला रहना एवं चलना बेहद महत्त्वपूर्ण है।
Monday, July 28, 2014
If/Rudyard Kipling
If you can keep your head when all about you
Are losing theirs and blaming it on you,
If you can trust yourself when all men doubt you,
But make allowance for their doubting too;
If you can wait and not be tired by waiting,
Or being lied about, don’t deal in lies,
Or being hated, don’t give way to hating,
And yet don’t look too good, nor talk too wise:
If you can dream — and not make dreams your master;
If you can think — and not make thoughts your aim;
If you can meet with Triumph and Disaster
And treat those two impostors just the same;
If you can bear to hear the truth you’ve spoken
Twisted by knaves to make a trap for fools,
Or watch the things you gave your life to, broken,
And stoop and build ’em up with worn-out tools:
If you can make one heap of all your winnings
And risk it on one turn of pitch-and-toss,
And lose, and start again at your beginnings
And never breathe a word about your loss;
If you can force your heart and nerve and sinew
To serve your turn long after they are gone,
And so hold on when there is nothing in you
Except the Will which says to them: “Hold on!”
If you can talk with crowds and keep your virtue,
Or walk with Kings — nor lose the common touch,
If neither foes nor loving friends can hurt you,
If all men count with you, but none too much;
If you can fill the unforgiving minute
With sixty seconds’ worth of distance run,
Yours is the Earth and everything that’s in it,
And — which is more — you’ll be a Man, my son!
Are losing theirs and blaming it on you,
If you can trust yourself when all men doubt you,
But make allowance for their doubting too;
If you can wait and not be tired by waiting,
Or being lied about, don’t deal in lies,
Or being hated, don’t give way to hating,
And yet don’t look too good, nor talk too wise:
If you can dream — and not make dreams your master;
If you can think — and not make thoughts your aim;
If you can meet with Triumph and Disaster
And treat those two impostors just the same;
If you can bear to hear the truth you’ve spoken
Twisted by knaves to make a trap for fools,
Or watch the things you gave your life to, broken,
And stoop and build ’em up with worn-out tools:
If you can make one heap of all your winnings
And risk it on one turn of pitch-and-toss,
And lose, and start again at your beginnings
And never breathe a word about your loss;
If you can force your heart and nerve and sinew
To serve your turn long after they are gone,
And so hold on when there is nothing in you
Except the Will which says to them: “Hold on!”
If you can talk with crowds and keep your virtue,
Or walk with Kings — nor lose the common touch,
If neither foes nor loving friends can hurt you,
If all men count with you, but none too much;
If you can fill the unforgiving minute
With sixty seconds’ worth of distance run,
Yours is the Earth and everything that’s in it,
And — which is more — you’ll be a Man, my son!
"एकला चलो रे" का सरल हिंदी अनुवाद
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
यदि कोई भी ना बोले ओरे ओ रे ओ अभागे कोई भी ना बोले
यदि सभी मुख मोड़ रहे सब डरा करे
तब डरे बिना ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रे
ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रेतेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
यदि लौट सब चले ओरे ओ रे ओ अभागे लौट सब चले
यदि रात गहरी चलती कोई गौर ना करे
तब पथ के कांटे ओ तू लहू लोहित चरण तल चल अकेला रे
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
यदि दिया ना जले ओरे ओ रे ओ अभागे दिया ना जले
यदि बदरी आंधी रात में द्वार बंद सब करे
तब वज्र शिखा से तू ह्रदय पंजर जला और जल अकेला रे
ओ तू हृदय पंजर चला और जल अकेला रे
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
यदि कोई भी ना बोले ओरे ओ रे ओ अभागे कोई भी ना बोले
यदि सभी मुख मोड़ रहे सब डरा करे
तब डरे बिना ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रे
ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रेतेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
यदि लौट सब चले ओरे ओ रे ओ अभागे लौट सब चले
यदि रात गहरी चलती कोई गौर ना करे
तब पथ के कांटे ओ तू लहू लोहित चरण तल चल अकेला रे
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
यदि दिया ना जले ओरे ओ रे ओ अभागे दिया ना जले
यदि बदरी आंधी रात में द्वार बंद सब करे
तब वज्र शिखा से तू ह्रदय पंजर जला और जल अकेला रे
ओ तू हृदय पंजर चला और जल अकेला रे
तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
Wednesday, July 23, 2014
कदम उसी मोड़ पर जमे हैं
कदम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूं
जुनूं ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूं
खुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आंखें झांकती हैं
अभी मेरे इनतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूं
मुझे तकाज़ा है वो बुला ले
कदम उसी मोड पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खडा हूं- गुलजार
नज़र समेटे हुए खड़ा हूं
जुनूं ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूं
खुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आंखें झांकती हैं
अभी मेरे इनतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूं
मुझे तकाज़ा है वो बुला ले
कदम उसी मोड पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खडा हूं- गुलजार
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