Friday, August 16, 2013

धर्म समन्वय के ऊपर स्वामी विवेकानंद जी के कुछ विचार

 "संसार के लिए यह बड़े ही दुर्भाग्य की  बात होगी यदि सभी मनुष्य एक ही धर्म, उपासना की एक ही पद्यति और नैतिकता के एक ही आदर्श को स्वीकार कर लें।  इससे सभी धार्मिक और आद्यात्मिक उन्नति को मृत्यु जैसा आघात पंहुचेगा।  "

दूसरे धर्म या मत के लिए हमें केवल सहनशीलता नहीं दिखानी है; बल्कि प्रत्यक्ष रूप से उन्हें स्वीकार करना होगा; और यही सत्य सब धर्मों की नींव है। "

"साधुता, पवित्रता और सेवा किसी सम्प्रदाय विशेष की संपत्ति नहीं है; और प्रत्येक धर्म ने श्रेष्ट तथा अतिशय उन्नत चरित्र के नर-नारियों को जन्म दिया है।  इन प्रत्यक्ष प्रमाणों के बावजूद भी यदि कोई ऐसा स्वप्न देखे कि अन्य सारे धर्म नष्ट हो जाएँ और केवल उसी का धर्म जीवित रहेगा, तो मैं अपने हृदय के अन्तस्तल से उस पर दया करता हूँ और उसे स्पष्ट बता देना चाहता हूँ कि सारे प्रतिरोधों के बावजूद, शीघ्र ही प्रत्येक धर्म की पताका पर यह लिखा होगा-संघर्ष नहीं सहयोग; पर भाव-विनाश नहीं पर भाव ग्रहण, मतभेद और कलह नहीं, समन्वय और शान्ति। "

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कल कुछ और विचार प्रस्तुत करूंगा।

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