Saturday, August 8, 2015

बाहर किसकी है माया

एक खूबसूरत गीत है, उसकी शुरूआती पंक्तियाँ उस से भी अधिक खूबसूरत।
"जे मैं तैनूं बाहर ढूँढाँ तो भीतर कौन समाया। 
जे मैं तैनूं भीतर ढूँढाँ , बाहर किस दी है माया। "

इस खूबसूरत पंक्ति को हम मानव चरित्र के हर पहलू के साथ जोड़ सकते हैं। यदि आप ईश्वर को मानते तो इसे ईश्वर के साथ जोड़ेंगे; यदि किसी रूठे हुए को मनाने निकले हैं तो उसके साथ जोड़ेंगे। पर यह जुड़ेगा अवश्य। मानव जीवन एक तलाश है और इस तलाश का महत्त्वपूर्ण पहलू है कि आप किसे तलाश रहे हैं ? क्या यह तलाश अनावश्यक नहीं ? पर यदि हम तलाश नहीं करेंगे तो जीवन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य समाप्त हो जाएगा।

राही का तो काम है चलता ही जावे।  आप जितना आगे बढ़ेंगे तलाश उतनी ही गहन हो जाएगी और साथ में आपका अभियान भी तेज हो जायेगा।  चलना न छोड़ें; यह तलाश ही जीवन है। 

Friday, August 7, 2015

तलवार

मेरे जूनून का नतीजा भले कुछ भी हो पर एक बात सच है कि जीवन खाली और अधूरा न होगा।अपह्लिज व्यथा से गुजर जरूर रहा हूँ पर उस व्यथा से भी कुछ न कुछ निकल कर ही आएगा। आज के दिन मैं अपनी इस छोटी सी कुर्सी पर बैठा अपनी जिंदगी के साथ तालमेल बिठाने का प्रयास कर रहा हूँ। आज आशातीत सफलता भी अपेक्षित है। फेसबुक से और जाने कहाँ कहाँ से ऊब चुका हूँ तो अब मैं सोचता हूँ थोडा बहुत जो भी है यहीं पर ही लिखता रहूँ। एक साल से जैसे कलम ने भी जवाब दे दिया है। पर अब इसे हर रोज उठाऊंगा और इसके साथ हर रोज ही लड़ाई करूंगा। कलम के साथ लड़ाई कर इसे ही तलवार बनाने का इरादा है।  भले ही इस तलवार से केवल मेरा ही अंत हो।


रविन्द्र

तमन्ना का फूल



तमन्ना आज बगीचे में अकेली घूम रही थी. सामने उसका पसंदीदा पौधा था; बेहद सुन्दर रंग वाले फूल खिलते थे उसपर. केवल एक ही समस्या थी; उसमें कांटे थे...बहुत पैने कांटे जो कभी भी चुभ सकते थे. पर तमन्ना को वह पौधा जान से प्यारा था. आज उसने फूलों से छेड़खानी की ठान ली थी. जैसे ही उसने छूने की ठानी और हाथ लगाया काँटों से उसका हाथ छिल गया. तमन्ना बेहद परेशान हुई और चली गयी. बाहर पार्क में घूमते हुए तमन्ना को एक छोटा सा पौधा बहुत अच्छा लगा. गहरी नारंगी टहनियों के साथ उस पौधे में छोटे छोटे पत्ते आये हुए थे. उन पत्तों को छेड़ने में तमन्ना को बहुत अधिक आनंद आ रहा था. तमन्ना ने उस पौधे को अपने साथ ले लिया और चल दी अपने बगीचे की तरफ. बगीचे में उस पौधे को लगा कर तमन्ना ने उसमे पहली बार पानी डाला. पौधे के पत्तों पर गिरा पानी तमन्ना को भा रहा था. उस पौधे के साथ खेलना और अठखेलियाँ करना तमन्ना का हर रोज का कार्य हो गया. पत्तों को हाथ में लेकर छेड़ना और हर रोज पानी देना. पौधा अब बड़ा हो रहा था. एक दिन उस पौधे पर सुर्ख लाल रंग का फूल निकला. फूल ऐसा कि उसे देखना अपने आप में तमन्ना के लिए बेहद सुखद अनुभव था. तमन्ना ने उस फूल को तोड़ लिया और अपने पास रख लिया. सारा दिन उस फूल के साथ खेलने में बीता. लगातार मिल रहे ध्यान से वह पौधा फूलों से घिर गया. अब तमन्ना अपने पुराने पौधे को देखती नहीं थी जिसके कारण उसके हाथ कभी छिले थे. समय बीतता गया और साथ ही उस पौधे का और तमन्ना का रिश्ता और भी पुख्ता हो गया. एक दिन तमन्ना ने देखा उसके पुराने पौधे पर आज बेहद सुंदर नारंगी फूल निकला है. उस फूल की छटा उन लाल रंग के फूलों से कही ज्यादा सुन्दर थी. आज तमन्ना ने नारंगी फूल को तोडा और अपने साथ ले गयी. दुसरे पौधे पर लगे लाल फूल के बोझ से पौधा झुक गया और शाम होते होते वह फूल मुरझा गया. तमन्ना अब अपने पुराने पौधे में पानी देती; उसके साथ खेलती. फूल आ रहे थे तो कांटे पीछे छिप गये. पर नए पौधे पर लग रहे फूल अब सूख रहे थे. उन्हें कोई न सहलाता और कोई न तोड़ता. न ही उस पौधे को पानी देता. तमन्ना के बगीचे में लगा नया पौधा अब सूखने लगा था. कुछ दिन यह सिलसिला चलता रहा. एक दिन तमन्ना सुबह उठी और अपने नए पौधे को देखने के लिए चल पड़ी. बाहर बागीचे में तमन्ना जैसे ही गयी तो देखा वह पौधा पूरी तरह से सूख चूका था. पुराने पौधे पर लगे नारंगी फूल तमन्ना का इन्तजार कर रहे थे. सुर्ख लाल फूलों का नामोनिशान मिट चूका था. न किसी ने उसके फूल ही तोड़े; न ही किसी ने इसे पानी ही दिया. तमन्ना के बागीचे का नया पौधा मुरझा चुका था. पुराने पौधे पर अब भी फूल लग रहे थे. पर अब वह पौधा नहीं बचा था जिसके फूलों से और पत्तों से तमन्ना को बहुत प्यार था कभी.