Friday, August 7, 2015

तलवार

मेरे जूनून का नतीजा भले कुछ भी हो पर एक बात सच है कि जीवन खाली और अधूरा न होगा।अपह्लिज व्यथा से गुजर जरूर रहा हूँ पर उस व्यथा से भी कुछ न कुछ निकल कर ही आएगा। आज के दिन मैं अपनी इस छोटी सी कुर्सी पर बैठा अपनी जिंदगी के साथ तालमेल बिठाने का प्रयास कर रहा हूँ। आज आशातीत सफलता भी अपेक्षित है। फेसबुक से और जाने कहाँ कहाँ से ऊब चुका हूँ तो अब मैं सोचता हूँ थोडा बहुत जो भी है यहीं पर ही लिखता रहूँ। एक साल से जैसे कलम ने भी जवाब दे दिया है। पर अब इसे हर रोज उठाऊंगा और इसके साथ हर रोज ही लड़ाई करूंगा। कलम के साथ लड़ाई कर इसे ही तलवार बनाने का इरादा है।  भले ही इस तलवार से केवल मेरा ही अंत हो।


रविन्द्र

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