अपना भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला। आज बड़े दिन के बाद पूर्व और पश्चिम का यह गीत सुना। हम कहाँ थे और कहाँ पंहुच गए! भारत अर्थात आर्यावर्त; न केवल इसकी भाषा अपितु इसकी संस्कृति, वेशभूषा, धर्म, मान्यताएं और यहाँ तक कि नागरिक भी एक गंभीर खतरे से रूबरू हैं और इसे कोई भी नहीं समझ पा रहा। मान्यताओं को खंडित करने में यदि किसी को नोबल मिलना चाहिए तो वे हैं भारतवर्ष के नागरिक। ऐसा नहीं है कि भारत वर्ष में सब बुरा ही बुरा रहा है। इस महान गीत को सुनते हुए यह ब्लॉग लिख रहा हूँ और मुझे पूरी तरह से एहसास है कि भारत महान था और बन भी सकता है। जरूरत है तो बस उस इमानदारी की जिसके कारण भारत वर्ष के प्रधानमन्त्री (चाणक्य) एक झोंपड़ी में रह कर स्वयं के तेल से अपने मेहमानों के साथ चर्चा करते थे। ऐसा सोचना ही बेमानी है कि हम बिलकुल सही थे; पर आवश्यकता है हमें अपने अन्दर उस इमानदारी को विकसित करने का जिस इमानदारी में हम अपनी गलती को स्वीकार कर उसे सही करने का प्रयास करें।
भगवान् करे ये और फले; बढ़ता ही रहे और फूले फले। मेरे जैसे इंसान रहें या न रहे इस राष्ट्र की श्रेष्टता के लिए लोग आगे आते रहेंगे और कोई छोटा सा ही सही पर प्रयास करते रहेंगे। इन प्रयासों से ही हम अपने शीर्ष गौरव को प्राप्त कर पायेंगे।
ज्यादा लिख नहीं पाऊंगा। शुभ रात्रि ; जय हिन्द।
भगवान् करे ये और फले; बढ़ता ही रहे और फूले फले। मेरे जैसे इंसान रहें या न रहे इस राष्ट्र की श्रेष्टता के लिए लोग आगे आते रहेंगे और कोई छोटा सा ही सही पर प्रयास करते रहेंगे। इन प्रयासों से ही हम अपने शीर्ष गौरव को प्राप्त कर पायेंगे।
ज्यादा लिख नहीं पाऊंगा। शुभ रात्रि ; जय हिन्द।
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