यतो धर्मस्ततो जयः, अर्थात जहाँ धर्म है वहां जय है। हिन्दू धर्म का यह महान सन्देश कहीं गुम हो गया लगता है। आज गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है, उन्होंने अपने महान काव्य में कहा था," परहित सरसी धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई" अर्थात दूसरे के हित से बड़ा धर्म नहीं है एवं दूसरे को पीड़ा देने से अधिक अधर्म का कोई कार्य नहीं है। जब मैं भारतवर्ष के पिछले तीस देखता हूँ तो वह सम्पूर्ण रूप से अधर्म से भरे हैं। किसी भी धर्म ने अन्य धर्म को पीड़ा देने से गुरेज नहीं किया; हालांकि यह अवश्य सत्य है कि बहुसंख्यकों ने अल्पसंख्यकों का अधिकतर जगह पर ध्यान रखा है (एक दो अपवादों को छोड़ कर ) पर फिर भी भारतवर्ष ने अपने एक विशेष चरित्र की हत्या कर दी है; वह है हर स्थिति एवं हर परिस्थिति में अपने धर्म का पालन। अधर्म ने यहाँ इस हद तक घर कर लिया है कि सभी मन्त्र, श्लोक, मान्यताएं एवं दोहे फेल हो गए लगते हैं। चाहे साम्प्रदायिकता हो या धर्मनिरपेक्षता हो; हर जगह हम दोहरा चरित्र रखते हैं।
आप ने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें... इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 16-08-2013 की http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस हलचल में शामिल रचनाओं पर भी अपनी टिप्पणी दें...
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कुलदीप ठाकुर [मन का मंथन]
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