कदम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूं
जुनूं ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूं
खुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आंखें झांकती हैं
अभी मेरे इनतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूं
मुझे तकाज़ा है वो बुला ले
कदम उसी मोड पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खडा हूं- गुलजार
नज़र समेटे हुए खड़ा हूं
जुनूं ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूं
खुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आंखें झांकती हैं
अभी मेरे इनतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूं
मुझे तकाज़ा है वो बुला ले
कदम उसी मोड पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खडा हूं- गुलजार
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